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अनकही रेखा

Updated: Sep 2

दिल्ली का कॉलेज। गर्मियों की दोपहर, नई क्लास का पहला दिन। कक्षा के पिछली बेंच पर बैठी थी रेखा – लंबी चोटी, आँखों में सपने, और डायरी में कविताएँ लिखने की आदत। सामने बैठी थी अन्या – चश्मा लगाए, स्केचबुक में पेंसिल से रेखाएँ खींचती हुई।

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