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    अवतार सिंह , दिल्ली में ही अपने एक पुराने, सीलन और यादों से भरे मकान में अकेले रहता है।  उस घर के पुराने दरवाज़े पर जंग लगे लोहे की घंटी है, जो अब बहुत कम बजती है। अंदर की दीवारों पर कुछ पुरानी तस्वीरें लटकी हैं — बेटी कि शादी की, एक तब कि जब बेटी स्कूल में थी, और एक मुस्कुराती हुई तस्वीर उनकी पत्नी की — जो अब जीवित नहीं रहीं। पत्नी को गुज़रे बरसों हो गए। वो साथ थीं, तो जैसे हर दिन में कोई उद्देश्य था — छोटी छोटी बातों पर हलकी नोक झोंक, दवा की याद दिलाना, कभी गुरूद्वारे जाना, और शाम को साथ टीवी देखना। वो चली गईं, तो मानो समय भी ठहर सा गया। वह बीते हुए दिन बार-बार उसकी आँखों के सामने तैर आते हैं। लगता है मानो अभी कल ही की बात हो, जब शादी के बाद उसने अपने जीवन की एक नई शुरुआत की थी। उस घर में ईंट-ईंट जोड़कर उसने अपना संसार रचा, परिवार बसाया। शुरुआती दिन अक्सर चिंताओं में गुजरते थे—पैसे कैसे जुड़ेंगे, आने वाला कल कैसा होगा। मगर हर कठिन घड़ी में एक कंधा था जिस पर सिर रख कर वह सुकून पा सके, एक हाथ था जो कसकर थाम लेता था। जीवन की वह भागदौड़, बच्ची की खिलखिलाहट, बरामदे में शाम की चाय, और गर्मियों की रातों में आँगन में फैले तारों की छाँव… सब कुछ आज भी उसी ताजगी से उसके मन में बसा है। समय भले ही आगे बढ़ गया हो, पर यादें अब भी वहीँ ठहरी हैं — जैसे ज़िन्दगी का सबसे सुरीला राग, जो हर बार सुनने पर उतना ही नया लगता है। पर सच्चाई यही है कि वह समय अब लौटकर नहीं आएगा। बचा है तो केवल उसकी स्मृतियों का संसार—वे यादें जो कभी मुस्कान देती हैं, तो कभी आँखों में नमी भर देती हैं। हर स्मृति के साथ आता है एक अदृश्य बोझ—बेचैनी का, पछतावे का और उस मौन विलाप का, जिसे कोई सुन नहीं पाता। और फिर रह जाता है बस एक गहन अकेलापन। ऐसा अकेलापन, जिसके पार जाने का न कोई उपाय है, न ही कोई लक्ष्य। जीवन की भीड़-भाड़ के बीच यह अकेलापन भीतर से चुपचाप खाता रहता है—मानो स्मृतियाँ ही उसका एकमात्र सहारा हों और वही सबसे गहरी चोट भी। अवतार सिंह की वेशभूषा अब जैसे उसकी उम्र से भी ज़्यादा बूढ़ी हो चुकी थी। जब भी कोई उसे देखता — अक्सर एक पुराना-सा पायजामा, जिसकी डोरी भी ढीली हो चली थी, और ऊपर एक सफ़ेद, बिन इस्त्री की कमीज, जो अब सफ़ेद कम और मटमैली ज़्यादा लगती। हालाँकि उनकी असल उम्र पैंसठ साल ही थी, पर उनके चेहरे की झुर्रियाँ, झुकी हुई कमर, धीमी चाल और सुस्त आँखों की थकान देखकर कोई भी उन्हें पचहत्तर का मान लेता।  कभी मोहल्ले के छोटे बच्चे पीछे से चुपके से हँसते —“देखो, बाबा फिर उसी पजामे में घूम रहे हैं।” तो कभी कोई दुकानदार पूछ बैठता —“बाबाजी, आप ठीक हैं ना? तबीयत तो ठीक है?” क्योंकि जो आदमी कभी रौबदार अफसर हुआ करता था, जिसकी प्रेस की हुई शर्ट और चमकते जूते एक दौर में उसकी पहचान थे — अब वही आदमी, जैसे खुद से ही दूर होता चला गया हो। अवतार सिंह, कभी एक ज़िम्मेदार और ईमानदार सरकारी अधिकारी था। पूरे चालीस साल तक उन्होंने अपने फ़र्ज़ को इबादत की तरह निभाया। न रिश्वत ली, न किसी की आत्मा को दुखाया। कड़क पंजाबी आवाज़ और सँवारी हुई  दाढ़ी वाले इस इंसान को कभी सब सलाम करते थे। एक मिसाल थे — अच्छे पति, जिम्मेदार पिता, और एक बेहद ईमानदार और शरीफ आदमी की मिसाल। उनकी एक बेटी है — जिसे उन्होंने अपनी जान से भी ज़्यादा चाहा। हर छोटी-सी चाह, हर मासूम-सी ज़िद उन्होंने पूरी की। इतना लाड़-प्यार बरसाया कि कई बार उनकी पत्नी भी झिड़क देतीं—‘सुनो, इस तरह बिगाड़ दोगे अपनी बिटिया को।’पर अवतार सिंह के लिए वह झिड़की भी किसी संगीत-सी थी, क्योंकि उनके लिए उनकी बेटी ही तो उनकी दुनिया थी। हर सुबह जब वह स्कूल की यूनिफॉर्म में, पोनीटेल बांधे दरवाज़े से निकलती, तो अवतार सिंह के लिए जैसे पूरा घर रौशन हो जाता। अवतार सिंह ने बेटी की परवरिश में कोई कसर नहीं छोड़ी। अपनी हर ख़्वाहिश को पीछे रखकर उसे सबसे अच्छी शिक्षा दी और डॉक्टर बनाया. आज बेटी का अपना एक परिवार है, जिसमें वह बेहद ख़ुशहाल है। अवतार सिंह की रिटायरमेंट को पाँच साल हो चुके हैं। पहले कुछ दिन तो लोगों के फोन आते रहे, मिलना-जुलना होता रहा। लेकिन फिर जैसे सब धुंधला होता चला गया। कभी-कभी पुराने दोस्त बुलाते हैं — "आ जा यार अवतार! आज सब मिल रहे हैं !" पर अवतार अब नहीं जाता। उसके दोस्त अब भी ज़िन्दगी आनंद से जिए जा रहे हैं — चमकते कपड़े, महँगी गाड़ियाँ, और हर शाम महफ़िलें। लेकिन अवतार सिंह को अब इन चीज़ों से कोई लगाव नहीं। हालाँकि ज़िन्दगी के ज़्यादातर हिस्से अब अवतार सिंह से रूठ चुके हैं, पर कुछ है जिससे उनका रिश्ता अभी भी नहीं बदला। वो है — उनकी पुरानी कार। सफेद रंग की, थोड़ी झुकी हुई कमर जैसी बॉडी, खिड़कियों पर पीलेपन की एक नर्म परत, लेकिन ऊपर से हर सुबह पानी से धोकर चमकाई जाती। पैंतीस साल पुरानी हो चली है, लेकिन अवतार सिंह के लिए वो किसी मंदिर की मूर्ति से कम नहीं। हर सुबह जैसे उनकी दिनचर्या तय हो — सबसे पहले कार की सफाई। बाल्टी में पानी भरना, पुराने तौलिए से पोंछना, और फिर वही पुराना पॉलिश का डब्बा खोलकर बड़े प्रेम से उसे चमकाना। जैसे कोई अपने बीते हुए कल को फिर से ज़िंदा कर रहा हो। पास-पड़ोस वालों के लिए ये रोज़ का तमाशा बन गया था। किसी के लिए वह कार बस एक जंग लगी कबाड़ की ढेर थी, तो किसी के लिए अवतार सिंह की सनक। पड़ोसियों के पास नई-नई चमकदार कारें आ चुकी थीं — SUV, सेडान, हैचबैक — हर मॉडल, हर रंग। लोग बदलते वक्त के साथ बदल गए थे, मगर अवतार सिंह नहीं बदले। कोई चाहे कितना भी मज़ाक उड़ाए, पर अवतार सिंह के कानों पर जूँ तक नहीं रेंगती। कल  ही की बात है — जब वो कार को बड़े सलीके से चमका रहा था, सामने से गुजरती  मिसेज़ भाटिया  ने मज़ाक में आवाज़ दी — "अरे अवतारा! कितनी बार धोएगा इस रद्दी को? अब तो इसे कबाड़ वाले को दे दे, किसी काम की तो रही नहीं!" और ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगीं। अवतार सिंह ने अपनी झुकी कमर सीधी की, कपड़े से हाथ पोंछे और थोड़ा झुँझलाते हुए बोले — "किसी काम की नहीं रही? आपकी उम्र कितनी है भाटिया जी?" भाटिया थोड़ी चौंकीं, फिर मुस्कुराकर बोलीं, "61 की हूँ मैं।" अवतार सिंह ने गुस्से से  कहा — "ये तो अभी 40 की भी नहीं हुई, अब आप ही सोच लो, कौन काम का नहीं रही!" भाटिया जी एक पल को ठिठक गईं, फिर बस ‘हँस के टाल दिया’। अवतार सिंह को जब भी कहीं जाना होता — बैंक, दवा लेने, या किसी से मिलने — तो बस उसी कार में जाता।लोग उसका मजाक बनाते पर उन्हें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता।वो जनता था — ये कार भी अब उनकी ही तरह बूढ़ी है, थकी हुई है, लेकिन वफ़ादार है। ना जाने कितने हसीन पल उस कार में बंद हैं — वो कार जो उन्होंने  बेटी के जन्म के समय खरीदी थी।  वो पल, जब अस्पताल से बच्ची को गोद में लेकर लौटे थे — उसी कार की सीट पर नई ज़िन्दगी लेटी थी। वो कार ही तो थी जिसमें पहली बार पूरा परिवार पिकनिक मनाने गया था। जिसमें बेटी स्कूल के पहले दिन बैठी थी, घबराई हुई, माँ का आँचल पकड़े हुए। ना जाने कितनी ही बार उस कार ने परिवार को बिन बरसात में भीगे,बिन धूल में लिपटे, और सर्दियों की ठिठुरती रातों में सुकून और गरमाहट के साथ मंज़िल तक पहुँचाया था। कभी गुरूद्वारे की यात्रा हो, कभी किसी रिश्तेदार की शादी, या फिर अचानक आई कोई आपदा — हर बार वही कार चुपचाप ढाल बनकर खड़ी रही। वो कार सिर्फ़ एक गाड़ी नहीं थी, बल्कि शान और शोहरत का प्रतीक हुआ करती थी। उस दौर में गिनी-चुनी हस्तियों के पास ही कार होती थी, और जिनके आँगन में वो खड़ी रहती —समाज में उनकी तरक्क़ी और रुतबे की पहचान वहीं से शुरू होती थी। अवतार सिंह जब उसे लेकर सड़क पर निकलते, तो राहगीरों की नज़रें ठहर जातीं, बच्चे उसे हाथ हिलाकर सलाम करते, और पड़ोसी गर्व और ईर्ष्या के मिले-जुले भाव से देखते। वो कार उस समय उनकी मेहनत, संघर्ष और उपलब्धि का आईना थी। लोहे के ढांचे से कहीं ज़्यादा, वो उनके सपनों की चमक और उनकी पहचान का उजाला थी।   पर अब वो सभी पल भी  बीते कल की किताब  बन चुके हैं — पर उनकी गंध, उनकी आहट, उनकी गर्माहट… सब उस कार में अब भी कहीं छुपी हुई हैं। कई बार ऐसा हुआ कि कार सड़क के बीचोंबीच बंद हो गई — पीछे लंबी कतार, हॉर्न की आवाज़ें, और फिर लोग चिल्लाते: "किसने ये कबाड़ बीच रोड में लगा दिया!" फिर वही लोग उसे धक्का देकर सड़क के किनारे लगाते, और नाक-भौं सिकोड़ते हुए चले जाते। पर अवतार सिंह कभी गुस्सा नहीं करते। ये कार कोई मशीन नहीं — ये उनकी बीती ज़िन्दगी की आख़िरी साथी है, वो साथी जो न कभी शिकायत करती है, न छोड़कर चली जाती है। और शायद इसी वजह से, अवतार सिंह उसे अब भी उसी प्यार से संभालते हैं,जैसे किसी को  अपने खोए हुए कल की आख़िरी निशानी  को सहेजना होता है।   पिछले महीने एक दिन, दोपहर ढलने को थी, जब अवतार सिंह के पुराने मोबाइल पर घंटी बजी। स्क्रीन पर चमकता नाम देख कर उनके होंठों पर एक हल्की मुस्कान आई — बेटी का फोन था। " पापा, कैसे हो आप? " " मैं ठीक हूँ बेटा, तू कैसी है? और परिवार में सब ठीक है? " " हाँ पापा, सब ठीक हैं। " फिर थोड़ी उत्सुकता के साथ बोली," आज मेरी बेटी का बर्थडे है... पाँच साल की हो गई है। " अवतार सिंह के चेहरे पर एक चमक आ गई।खुशी से बोले, " ओह बेटा! बड़ी खुशी की बात है। भगवान उसे लंबी उम्र दे। " " हाँ पापा... और आज घर पर डिनर रखा है, सारे मेहमान आ रहे हैं।आपको भी ज़रूर आना है। प्लीज़ पापा, हर बार की तरह कोई बहाना मत बनाना। " अवतार सिंह ने हल्के से हँसते हुए कहा, " हाँ बेटा, ज़रूर आऊँगा। तू कोई चिंता मत कर। " कुछ पल की खामोशी के बाद बेटी की आवाज़ थोड़ी संकोच में आई —" हाँ पापा… पर… एक बात बोलनी थी। " " क्या बेटा? " " पापा, वो… अपनी कार में मत आना। आप मुझे बता देना, मैं कैब भेज दूँगी। " अवतार सिंह की आँखों से जैसे उस क्षण की रोशनी थोड़ी कम हो गई। चेहरा एकदम  उदास  सा हो गया।फिर थोड़ी देर चुप रहने के बाद बोले, " अच्छा बेटा… ठीक है। " बेटी ने थोड़े झिझकते हुए कहा," हाँ पापा… बुरा मत मानना।वो क्या है ना, सब लोग फिर मज़ाक बनाते हैं…वो मुझे अच्छा नहीं लगता। " अवतार सिंह ने कुछ नहीं कहा। बस खिड़की के बाहर देखा — वहीं खड़ी उनकी वफ़ादार कार , जिसकी धूप से रंग थोड़ा उड़ चुका था, और शरीर में जंग के निशान पड़ने लगे थे। वो कार, जिसने कभी उनके पूरे परिवार को एक साथ जोड़े रखा था…आज उसकी उपस्थिति लज्जा का कारण  बन गई थी। **** रोज़ की तरह आज सुबह भी अवतार सिंह अपनी कार को पोछ-पाछ रहे थे।सर्दी की नमी हवा में तैर रही थी और सूरज की किरणें धीमे-धीमे पुरानी सफेद बॉडी पर पड़ रही थीं। तभी अचानक, गेट के बाहर से दो युवा—एक लड़का और एक लड़की—उस कार को एकटक देख रहे थे।अवतार सिंह की नज़र एक पल को उन पर पड़ी, मगर उसने उन्हें नज़रअंदाज़ कर दिया।लोगों का उसकी कार को घूरना और फिर मज़ाक बनाना कोई नई बात नहीं थी।वो चुपचाप अपनी कार की सफाई में जुटा रहा। पर कुछ देर बाद उसे महसूस हुआ कि ये दोनों अब भी वहीं खड़े हैं। पर उनकी नज़रों में वो उपेक्षा नहीं थी जो अक्सर लोग दिखाते थे, बल्कि उनकी आँखों में एक  जिज्ञासु श्रद्धा  थी, मानो कोई पुरानी किताब  को आदर से निहारा जा रहा हो। जैसे ही अवतार सिंह ने उनकी ओर देखा, लड़की ने मुस्कुरा कर हाथ हिलाया और इशारे में अंदर आने की अनुमति माँगी।अवतार ने थोड़ी हैरानी के साथ सिर हिला कर इजाज़त दे दी। अंदर आते ही दोनों युवाओं की आँखें चमकने लगीं।वो दोनों मानो उस कार में खो से गए थे। लड़की ने विस्मय से पूछा," अंकल, आपने इस विंटेज कार को अब तक कितना सँभाल कर रखा है… कमाल है। " लड़का तो जैसे कोई खजाना देख रहा था। कभी टायर पर हाथ फेरता, कभी दरवाज़ा खोल कर सीटें देखता और बार-बार बोलता," ब्यूटीफुल… सो ब्यूटीफुल। " उन्होंने बताया कि वे पास के कॉलेज में आर्ट्स के छात्र हैं।अक्सर वे पुरानी चीज़ों—जैसे कि पेंटिंग्स, मकान, कार, या कोई ऐतिहासिक वस्तु—की फ़ोटोग्राफ़ी करते हैं और उन्हें अपने इंटरनेट और ब्लॉग पेज पर डालते हैं। फिर लड़की ने मुस्कुराते हुए कहा," अंकल, ऐसी गाड़ियाँ अब दिखती ही नहीं। हजारों लोग आपकी इस कार को देखना पसंद करेंगे। " थोड़ा संकोच करते हुए लड़के ने जोड़ा," अभी हमारे पास कैमरा नहीं है, पर अगर आपको कोई आपत्ति न हो, तो हम कल सुबह फिर आएँगे, इस कार की फोटो लेने। " अवतार सिंह कुछ नहीं बोले।वो तो बस चुपचाप खड़े उन दोनों की बातें सुन रहे थे।मन के भीतर कहीं एक भाव उमड़ रहा था… उलझन और हैरानी  के बीच एक हल्की सी  कृतज्ञता की झलक। वो दोनों कुछ देर तक कार को निहारते रहे, फिर नम्रता से विदा लेकर चले गए।अवतार सिंह देर तक वहीं खड़े रहे…उनकी उंगलियाँ अब भी कार की बॉडी पर चल रही थीं, और मन में एक अजीब सी दुविधा। नज़रें अब भी उसी दिशा में टिकी थीं जहाँ से वे दोनों गए थे।मानो उनके जाते-जाते भी हवा में कोई अनकहा भाव तैर रहा हो। **** अपने  कहे अनुसार ही, अगले दिन सुबह वही दो युवा—कैमरा लिए हुए—अवतार सिंह के घर के बाहर पहुँच गए।इस बार उनके साथ दो और साथी भी थे, शायद वही कॉलेज के या फोटोग्राफी क्लब से। पर जैसे ही उन्होंने घर के भीतर झाँकने की कोशिश की, कुछ खटक गया— वो कार… वहां नहीं थी। हैरान होकर उन्होंने पास खड़े एक पड़ोसी से पूछा। पड़ोसी ने सहज भाव से कहा,“शायद बाहर गए हैं… आते ही होंगे।” तो सबने बाहर ही खड़े होकर इंतज़ार करना शुरू कर दिया।  सड़क पर हल्की धूप फैल चुकी थी। तभी...एकाएक एक  तेज़ हॉर्न  सुनाई दिया। सड़क के मोड़ से एक नई चमचमाती SUV  अंदर मुड़ी और घर के सामने आकर रुकी। SUV का दरवाज़ा खुला...और बाहर निकला एक ऐसा व्यक्ति, जिसे देखकर सब देखते रह गए। काले रंग की  सलोने अंदाज़ में बाँधी हुई पगड़ी ,तरतीब से सजी  चाँदी सी सफ़ेद दाढ़ी ,चेहरे पर  स्टाइलिश काला चश्मा ,बिलकुल  funky black-and-white  टीशर्ट,नीली जींस, और झकाझक  स्पोर्ट शूज़। वो चुपचाप SUV से उतरा।कदमों में ठहराव था, लेकिन चाल में एक अजीब-सा आत्मविश्वास।सामने आया और उसी सहजता के साथ अवतार सिंह के घर का गेट खोला, जैसे ये जगह उसी की हो। और फिर, गाड़ी को अंदर ले जाकर उसी जगह खड़ी कर दिया , जहाँ कल तक वो पुरानी कार खड़ी रहती थी। गाड़ी से बाहर निकलते ही उसकी आँखें बरबस बाहर खड़े युवाओं पर टिक गईं।चेहरे पर ताज़गी थी, आँखों में चमक और होंठों पर हल्की-सी रहस्यमयी मुस्कान। एक पल के लिए कैमरा लिए खड़े सभी युवक-युवतियाँ अवाक रह गए।उनकी नज़रें जैसे सन्न होकर उस पर जम गईं।फिर अचानक ही, हैरानी के बीच एक हल्की मुस्कान उनके चेहरों पर तैर गई— मानो किसी रहस्य का परदा धीरे-धीरे उठ रहा हो। अगले ही क्षण, वो सब जैसे किसी सम्मोहन से बाहर आए।फौरन उत्साह और कौतूहल से भरकर घर के भीतर दाखिल हो गए। फिर शुरू हुआ फोटोशूट। कभी दूर से चौड़े एंगल में,कभी बेहद क़रीब से हर झुर्री, हर रेखा को कैद करते हुए।कभी रोशनी से खेलते हुए, तो कभी छाँव में ठहरकर। लेकिन इन तस्वीरों में अब कोई धातु का पुराना ढाँचा नहीं था, बल्कि एक  जीता-जागता इंसान  था। अवतार सिंह जो खुद, एक चलता-फिरता किस्सा था। Writer Jolly Vijay

  • Love Story

    Love Story - Chapter - 1

  • Few Things Untold (Kuch Baatein Ankahi)

    “Come on dear, we are late for the movie.” “yes! Yes! Why not we are always late because of me, you never do anything.” “Sanam, don't start again now, I was just saying to hurry because we are getting late a lot, and there will be a lot of traffic on the way. And we are new here, so it takes time to find the way.” S a n am murmured, hurriedly walked outside the door as an irate confront, and stopped at the door, turned and looked at Samar in a seethe. Sanam said “now what are you looking at my face, now you are waiting for whom? Samar said with a snide grin, “take your stole at least.” Sanam once more furiously went beneath the room, picked up her dupatta and came outside the door, Samar was still giggling quietly seeing Sanam, he closed the door of the house and both of them left. They made it to the cinema on time and sat in their seats. The whole theatre was full of people and advertisements were running on the screen. And as soon as the national anthem began the light went off and it took me the first 10 seconds to understand what happened and then people started screaming, then the guard at the door said wait in 10-15 minutes the light will come. Sanam started saying angrily, “I should not come anywhere with you,” to which Samar replied saying that “it is right, I was considering precisely the same.” “People are going out to the canteen, in case you need to eat something, at that point let me know I will bring it.” Sanam furiously said, turning her confront to the other side, “no! I don't need anything to eat, I need to go home.” Samar inc leaning back comfortably on the seat said, I am not going anywhere, it is fair a matter of 10-15 minutes, the light will come and the motion picture will begin.I am attending to get paneer wrap for myself, ought to I bring for you the same. Sanam was stunned and said, what? Paneer wrap! You don’t like paneer, right.” “Who told you?” “ your mom.” “When?” When we got married, she told me  what  people in the house like and don't like about their food, then she told me you don't like paneer, you like potatoes and peas.  Samar grinned and said, no, there's nothing like that. The fact is that my little aunt is interested in organic farming. Nobody but me likes to eat paneer in our house. Samar lowered his head and nodded his neck in despair and lightly hitting his hand on the head said, Sanam, you do not even know this in four years of our marriage. What do I like or dislike, Sanam said angrily as if you know very much what I like, Samar turned to Sanam and said, hands on  chest, ask what you want to know about yourself..Sanam: Tell me what I like to eat, Samar: Dal Rice, Aalu Ki Sukhi Sabzi, Chicken Biryani. Sanam - My Favourite Outfit Samar - Saree with Jhumka and Matching Bangles Sanam - My Favourite Person Samar - Your Father Sanam smiled and shook her neck from right to left and said No to Samar. Samar looked at Sanam with a surprised look, Sanam said I like to eat chicken biryani, chicken tikka and fried fish, I like to wear salazar kameez, with  jhumki with bracelets of the same colour with a dot of the same colour in the middle of my eyebrows ( bindi). My favourite person is always you. My father is my hero and mentor. Samar smiled warmly and said I'm your favourite person, Sanam nodded yes Samar smiled lovingly and said Iam your favourite person, Sanam nodded, Yes. Samar said I'm sorry. I haven't been able to get to know you well in these four years of marriage, where did I get to know you? And even if we know how we know each other, these are the side effects of love at first sight, yes, it's true.

  • The Clockmaker's Secret

    Once there was a vintage clock shop in the middle of a busy city called the Timekeeper's Emporium. It had a mysterious atmosphere. " Benjamin was a very good clock maker and he put a lot of effort into making each clock perfect. Margaret, who traveled through time, often visited the shop because she was interested in its mysterious secrets. One day it was raining and Margaret went into the store. Her coat was wet from the rain. Benjamin stopped working and smiled when he saw her. "What are you doing here today, Margaret. " he asked, cleaning his hands with a cloth. Margaret went up to the counter with a mysterious look in her eyes. "Benjamin, I need you to help me," she said quietly. Interested, Benjamin moved in closer to see better. "What's Another trip back in time. Margaret nodded seriously. "Yes, but now I want to find out the truth about the Timekeeper's store. " "There is a secret inside these walls, and I need your help to find it. " Benjamin felt very excited and his heart was beating fast. He was curious about discovering the secrets of the shop. "I agree to it. " "What should we do. "

  • What Makes Reviving Stories Contest a Timeless Opportunity for Writers?

    Time travel captures our imagination like few other concepts. The ability to explore different eras and relive significant moments taps into our curiosity about history and the future. Imagine reviving lost stories and giving them a chance to shine once more. This exciting idea lies at the heart of the "Reviving Stories: A Time Travel Writing Contest," encouraging writers to unleash their creativity.

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