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अनकही रेखा

Updated: 8 hours ago

दिल्ली का कॉलेज। गर्मियों की दोपहर, नई क्लास का पहला दिन। कक्षा के पिछली बेंच पर बैठी थी रेखा – लंबी चोटी, आँखों में सपने, और डायरी में कविताएँ लिखने की आदत। सामने बैठी थी अन्या – चश्मा लगाए, स्केचबुक में पेंसिल से रेखाएँ खींचती हुई।

क्लास खत्म होने के बाद दोनों की नज़रें मिलीं। रेखा मुस्कुराई – “तुम बहुत अच्छा चित्र बनाती हो।” अन्या ने डायरी देखी – “और तुम कविताएँ… लगता है हम दोनों कला की दुनिया में खोए रहते हैं।” उस दिन से दोनों की दोस्ती की शुरुआत हुई।


कॉलेज की कैंटीन में घंटों बैठना, लाइब्रेरी में चुपचाप पढ़ाई का बहाना करके कविताएँ और स्केच साझा करना, होस्टल की छत पर बैठकर भविष्य के सपने देखना – दोनों की दोस्ती गहराती गई।

रेखा चाहती थी कि वह एक लेखिका बने, अन्या का सपना था एक चित्रकार बनने का। वे एक-दूसरे के सपनों को ताक़त देतीं, जैसे दो पंख मिलकर उड़ान भरते हैं।


पर ज़िंदगी हमेशा सरल नहीं होती। रेखा के परिवार ने कहा – “लिखने-पढ़ने से घर नहीं चलता। शादी करनी होगी।” अन्या के घरवालों ने कहा – “पेंटिंग बेकार है। नौकरी करो, वरना घर में बोझ बनोगी।”

दोनों ने एक-दूसरे को समझाने की कोशिश की, पर हालात ने उन्हें अलग कर दिया। रेखा की शादी हो गई और वह छोटे शहर में बस गई। अन्या नौकरी के लिए दूसरे राज्य चली गई।

कुछ पत्र लिखे गए, पर धीरे-धीरे खामोशी ने जगह ले ली।


कई सालों बाद दिल्ली में एक आर्ट एग्ज़िबिशन लगा। दीवार पर टंगी एक पेंटिंग के नीचे नाम लिखा था – अन्या शर्मा। रेखा भी उसी प्रदर्शनी में पहुँची थी, अपने पति और बच्चों के साथ।

उसने पेंटिंग देखी – उसमें दो लड़कियाँ थीं, एक हाथ में डायरी, दूसरी हाथ में ब्रश। दोनों एक-दूसरे की ओर देख रही थीं, पर उनके बीच लंबी रेखा खिंची थी – अलग करने वाली।

रेखा की आँखों में आँसू आ गए। पीछे से आवाज़ आई – “रेखा…” वह पलटी। अन्या सामने खड़ी थी। कुछ क्षण दोनों चुप रहीं। फिर गले लग गईं।


अन्या ने कहा – “देखो, हमारी दोस्ती मेरी कला में आज भी ज़िंदा है।” रेखा ने जवाब दिया – “और मेरी अधूरी कविताएँ आज भी तुम्हारा नाम पुकारती हैं।”

दोनों मुस्कुराईं। तभी गैलरी के मालिक ने अनाउंसमेंट किया – “आज की बेस्ट पेंटिंग के पीछे की असली कवयित्री भी यहीं मौजूद हैं। ये पेंटिंग उन्हीं की लिखी अधूरी कविताओं से प्रेरित है।”

रेखा हैरान रह गई। अन्या मुस्कुराई – “मैंने तुम्हारी कविताएँ कभी फेंकी नहीं, रेखा। हर लाइन को कैनवास पर उतार दिया। ये पेंटिंग्स तुम्हारी और मेरी साझी कहानी हैं।”

रेखा के पति और बच्चे हैरानी से उसे देख रहे थे – जिसे वह ‘अधूरी कविताएँ’ समझती थी, वह किसी और की कला की आत्मा बन चुकी थीं।


भीड़ से तालियाँ गूँज उठीं। रेखा की आँखों से आँसू बह निकले – पर इस बार खुशी के। उसने धीमे से कहा – “हम बिछड़े नहीं थे, अन्या। बस दुनिया ने हमें दो रास्तों पर भेजा था… ताकि हमारी कला फिर से हमें मिलाए।”

अन्या ने उसका हाथ पकड़कर कहा – “शायद यही हमारी किस्मत थी, दो अधूरी लड़कियों का मिलकर एक पूरी कहानी बनाना।”

गैलरी की रोशनी में दोनों की परछाइयाँ एक-दूसरे से मिल गईं, जैसे वह लंबी रेखा अब मिट चुकी हो।




अंतिम रंग 🌸

कलम और रंग जब मिल जाते हैं, 

दिल के जख्म भी सिल जाते हैं। 

दोस्ती की रेखा कभी टूटती नहीं, 

बस वक्त के पन्नों में छुप जाती है कहीं।


Writer

Jyotsna Kumari

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